Wednesday, August 10, 2011

औरत की हक़ीक़त

नारी तन है
नारी मन है
नारी अनुपम है

सागर से गहरा
उसका मन है
उसका बदन है

बाल घने हैं उसके
बोल भले हैं उसके
मन हारे पहले
पीछे तन हारे है

वफ़ा के पानी में
गूंथकर
मिट्टी प्यार की
सूरत बने जो
औरत उसका नाम है

हां, मैंने पढ़ा है
नारी मन को
आराम से
साए में
उसी के तन के

वह एक शजर है
हमेशा कुछ देता ही है
पत्थर खाकर भी

क़ुर्बानी इसी का नाम है
यही औरत का काम है

यह कविता, दरअस्ल एक कविता में उठाए गए सवाल के जवाब में तुरंत ही लिख डाली गई, जिसे आप देख सकते हैं इस शीर्षक पर क्लिक करके